84 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कहा DLS नियम के सह-खोजकर्ता फ्रैंक डकवर्थ ने


डीएलएस पद्धति का पहली बार प्रयोग 1996-97 में किया गया था (x.com) डीएलएस पद्धति का पहली बार प्रयोग 1996-97 में किया गया था (x.com)

क्रिकेट जगत के लिए एक दुखद खबर सामने आ रही है। डकवर्थ-लुईस-स्टर्न (DLS) पद्धति के सह-खोजकर्ता फ्रैंक डकवर्थ का 21 जून को 84 साल की उम्र में निधन हो गया।

जाने माने अंग्रेजी सांख्यिकीविद् फ्रैंक ने साल 1997 में टोनी लुईस के साथ मिलकर डकवर्थ-लुईस पद्धति विकसित की थी। यह पद्धति क्रिकेट में एक गेम-चेंजर बन गई, जिसने बारिश से प्रभावित मैचों में निष्पक्ष लक्ष्य निर्धारित करने की लंबे समय से चली आ रही चुनौती का समाधान किया। अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (ICC) ने इसे 2001 में संशोधित लक्ष्यों के लिए मानक के रूप में अपनाया।

डकवर्थ-लुईस प्रणाली शेष ओवरों और खोए गए विकेटों की संख्या के आधार पर 'रन-स्कोरिंग संसाधन' की गणना करती है, जिसका पहली बार प्रयोग 1 जनवरी 1997 को हरारे में ज़िम्बाब्वे बनाम इंग्लैंड मैच के दौरान किया गया था।

बारिश या किसी और वजहों के चलते रुकावट पड़ने वाले खेलों में लक्ष्यों को समायोजित करने के लिए इसका इस्तेमाल आदर्श बन गया। साल 2014 में ऑस्ट्रेलियाई सांख्यिकीविद् स्टीवन स्टर्न ने इस पद्धति को परिष्कृत किया, जिसके नतीजतन डकवर्थ-लुईस-स्टर्न पद्धति सामने आई, जिसने आधुनिक क्रिकेट के लिए इसकी सटीकता को बढ़ाते हुए मूल रचनाकारों के नज़रिए को भी बचाए रखा।

साल 1992 में सिडनी पर दक्षिण अफ़्रीका और इंग्लैंड के बीच वनडे विश्व कप के सेमीफ़ाइनल के दौरान अचानक बारिश के चलते ऐसी स्थिति पैदा हो गई कि दक्षिण अफ़्रीका को एक गेंद पर 22 रन बनाने थे, जो हासिल करना मुश्किल था। इसके बाद से रुकावट पड़ने वाले खेल में एक नए मानक रखने की ज़रूरत पर ज़ोर पड़ा। 

डकवर्थ और लुईस की सफलता को न केवल क्रिकेट जगत में बल्कि इससे इतर भी सम्मान मिला। जून 2010 में, दोनों को क्रिकेट और गणित में उनके योगदान के लिए मेंबर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर (MBE) से सम्मानित किया गया, जो उनके काम के गहन प्रभाव को दिखलाता है।